दलित के घर भोजन !!!
भारतीय राजनीति में एक विशेष प्रकार की नौटंकी होती है
फलाना नेता जी दलित के घर जा कर भोजन करेंगे :O
मतलब ऐसा बोल कर ही आप बता देते हो
कि
वो बेचारा नीची जाति का है
और उसके घर जा कर भोजन कर आप उस पर कोई बहुत बड़ा अहसान कर रहे हो
थोड़ी सी भी शर्म तो है नहीं हमारे राजनेताओं में
ये तो वो लोग हैं जो देश को बेच खाएं
इंसान तो फिर भी छोटी चीज़ है
खैर !
लेकिन मूल प्रश्न तो यह है कि
क्या कभी भारतीय राजनीति इस नीच किस्म की राजनीति से ऊपर उठ पाएगी ?
क्या किसी के घर भोजन कर देने से उसका उत्थान हो जाता है
क्या ये नेता खुद को भगवान राम समझते हैं जो शबरी के बेर खा लिए तो शबरी अमर हो गई
और भगवान राम ने तो शबरी के जूठे बेर खाए थे
क्या ये नेता किसी का जूठा खा पाएंगे ?
इनके लिए तो इनके चमचे पहले ही अलग भोजन ले आते हैं
मिनरल वॉटर की बॉटल ले आते हैं
बस भोजन का स्थान कहने को दलित का घर होता है
और
इसे दलित उत्थान कहते हैं :O
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