कुर्सी पर बैठा तंत्र-मंत्र हो,
असहिष्णु प्रजातंत्र हो,
मानव मस्तिष्क परतंत्र हो,
घोटालेबाज स्वतंत्र हो
आरक्षित जन-तंत्र हो,
फिर कहाँ लोकतंत्र हो?
असहिष्णु प्रजातंत्र हो,
मानव मस्तिष्क परतंत्र हो,
घोटालेबाज स्वतंत्र हो
आरक्षित जन-तंत्र हो,
फिर कहाँ लोकतंत्र हो?